मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी का निधन
( मौलाना हारून साहब ईशाअती नाजीम मदरसा मिफताहू उलुम गोंद्री तालुका औसा जिल्हा लातूर महाराष्ट्र )
आज, 4 मई 2025 को, एक दुखद समाचार सामने आया है कि मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी साहब का निधन हो गया है। वे भारतीय मुस्लिम समुदाय के एक प्रतिष्ठित विद्वान और शिक्षाविद् थे, जिनका योगदान शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में अविस्मरणीय रहेगा।
एक दूरदर्शी शिक्षाविद्:
1 जून, 1950 को गुजरात के कोसाडी में जन्मे मौलाना वस्तानवी ने पारंपरिक इस्लामी शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक ज्ञान के महत्व को भी समझा। उन्होंने कोसाडी के मदरसा कुव्वत-उल-इस्लाम से अपनी शिक्षा की शुरुआत की, जहाँ उन्होंने कुरान कंठस्थ किया। इसके बाद, उन्होंने बड़ौदा के मदरसा शम्स-उल-उलूम और तुर्केसर के मदरसा फलाह-ए-दारेन में आठ वर्षों तक इस्लामी शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने सहारनपुर के मज़ाहिर उलूम में भी उच्च शिक्षा हासिल की, जहाँ उन्होंने प्रतिष्ठित विद्वानों से इस्लामी विज्ञान और हदीस का गहन अध्ययन किया।
अपनी पारंपरिक शिक्षा के साथ, मौलाना वस्तानवी ने एमबीए की डिग्री भी प्राप्त की थी, जो धार्मिक और आधुनिक शिक्षा के समन्वय की उनकी अनूठी सोच को दर्शाती है। उन्होंने प्रमुख सूफी हस्तियों से आध्यात्मिक मार्गदर्शन भी प्राप्त किया था।
जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम की स्थापना:
मौलाना वस्तानवी की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक 1979 में महाराष्ट्र के अक्कलकुवा में जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम की स्थापना थी। एक छोटे से मदरसे से शुरू होकर, यह संस्थान उनके दूरदर्शी नेतृत्व में एक विशाल शैक्षिक परिसर में तब्दील हो गया। जामिया न केवल पारंपरिक इस्लामी शिक्षा प्रदान करता है, बल्कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और फार्मेसी जैसे आधुनिक विषयों में भी पाठ्यक्रम संचालित करता है।
उनकी सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि भारत के पहले अल्पसंख्यक-स्वामित्व वाले मेडिकल कॉलेज, जलना में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च की स्थापना थी, जिसे भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) द्वारा मान्यता प्राप्त है। इसके अलावा, उनके नेतृत्व में जामिया ने महाराष्ट्र और अन्य क्षेत्रों में कई स्कूल और मस्जिदें स्थापित कीं, जिससे शिक्षा और सामुदायिक विकास को महत्वपूर्ण बढ़ावा मिला।
दारुल उलूम देवबंद में संक्षिप्त और विवादास्पद कार्यकाल:
मौलाना वस्तानवी को 10 जनवरी, 2011 को दारुल उलूम देवबंद का कुलपति नियुक्त किया गया था, जो इस प्रतिष्ठित संस्थान के 200 साल के इतिहास में इस पद को संभालने वाले पहले गुजराती थे। उनकी नियुक्ति से संस्थान में आधुनिकीकरण की उम्मीदें जगी थीं।
हालांकि, उनका कार्यकाल अल्पकालिक और विवादास्पद रहा। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की विकास पहलों की प्रशंसा करने वाली उनकी टिप्पणी और 2002 के दंगों से आगे बढ़ने के सुझाव ने रूढ़िवादी तत्वों के विरोध को जन्म दिया। विवाद बढ़ने के कारण उन्हें जुलाई 2011 में अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
विरासत:
दारुल उलूम देवबंद में उनका कार्यकाल भले ही छोटा रहा हो, लेकिन मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी ने शिक्षा और सामुदायिक विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जामिया इस्लामिया इशातुल उलूम उनकी दूरदर्शिता और शिक्षा के प्रति समर्पण का जीवंत प्रमाण है। उन्होंने पारंपरिक और आधुनिक शिक्षा के समन्वय की एक अनूठी मिसाल पेश की, जिससे अनगिनत छात्रों को लाभ हुआ।मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी साहब का निधन भारतीय मुस्लिम समुदाय और शिक्षा जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनकी शिक्षाओं, उनके द्वारा स्थापित संस्थानों और उनके प्रगतिशील विचारों को हमेशा याद किया जाएगा। हम उनके परिवार और प्रियजनों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं। उनकी आत्मा को शांति मिले।
